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April 25, 2024

पौड़ी: लैंसडौन…ये वो नाम है, जो उत्तराखंड ही नहीं। बल्कि, देश और दुनिया के पर्यटन प्रेमियों के लिए पहल पंसद है। यहां हर साल देश के विभिन्न राज्यों के साथ ही दूसरे देशों के पर्यटक भी घूमने पहुंचते हैं। यह गढ़वाल राइफल का रेजिमेंटल सेंटर भी है। यहीं पर गढ़वाल राइफल के योद्धाओं को तैयार किया जाता है। लेकिन, अगर रक्षा मंत्रालय ने एक प्रस्ताव को मान लिया तो लैंसडौन की पहचान हमेशा के लिए बदल जाएगी।

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रक्षा मंत्रालय ने प्रस्ताव पर अमल किया तो पौड़ी जिले में स्थित सैन्य छावनी क्षेत्र लैंसडौन का नाम फिर ‘कालौं का डांडा (काले बादलों से घिरा पहाड़)’ हो जाएगा। 132 साल पुराने लैंसडौन नाम को बदलने की तैयारी है। रक्षा मंत्रालय के आर्मी हेड कवार्टर ने सब एरिया उत्तराखंड से ब्रिटिशकाल में छावनी क्षेत्रों की सड़कों, स्कूलों, संस्थानों, नगरों और उपनगरों के रखे नामों को बदलने के लिए प्रस्ताव मांगें हैं।

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रक्षा मंत्रालय ने उनसे ब्रिटिशकाल के समय के नामों के स्थान पर क्या नाम रखे जा सकते हैं, इस बारे में भी सुझाव देने को कहा गया है। इसी के तहत लैंसडौन छावनी ने इसका नाम ‘कालौं का डांडा’ रखने का प्रस्ताव भेजा है। पहले इसे ‘कालौं का डांडा’ पुकारा जाता था। स्थानीय लोग इसका नाम यही रखने की मांग वर्षों से करते आए हैं। रक्षा मंत्रालय को भी इस बाबत कई पत्र भेजे जा चुके हैं।

1886 में गढ़वाल रेजीमेंट की स्थापना हुई। पांच मई 1887 को ले.कर्नल मेरविंग के नेतृत्व में अल्मोड़ा में बनी पहली गढ़वाल रेजीमेंट की पलटन चार नवंबर 1887 को लैंसडौन पहुंची। उस समय लैंसडौन को कालौं का डांडा कहते थे। 21 सितंबर 1890 तत्कालीन वायसराय लार्ड लैंसडौन के नाम पर लैंसडौन रखा गया। केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने कहा कि समय-समय पर क्षेत्र के लोग नाम बदलने की मांग करते रहे हैं। देश, काल और परिस्थितियों को देखकर ऐसे प्रस्तावों पर विचार किया जाता है।

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